Wednesday, June 24, 2009

मेरी कविता


मिली जब नज़र आपसे, तो लगा कहीं ये कोई परी तो नहीं...
मुस्कुराई जब तुम तो लगा कहीं ये एक नई शुरुआत तो नहीं...
जब हाथ मिलाया आपसे तो लगा कहीं ये दोस्ती तो नहीं…
दोस्ती में जब मिले हम तो लगा कहीं ये कोई कारवां तो नहीं…
मुलाकातों का सिलसिला बड़ा जब तो लगा कहीं ये प्यार तो नहीं…
जब इकरार हुआ तो यकीन नहीं आया के ये मेरी ही ज़िन्दगी तो नहीं…
प्यार में शरारतें बड़ी तो लगा कहीं आप हमसे खफा तो नहीं...
कुछ दिनों तक आप मिले नहीं तो लगा कहीं ये नाराज़गी बढ़ी तो नहीं...
बहुत वक़्त होगया आपसे मिले तो लगा कहीं सासें हमसे दूर तो नहीं...
एक aahat सी हुई है दिल में तो लगा कहीं ये मेरी आरजू तो नहीं…
इन्तेज़ार कर रहे थे आपका, आज कहीं ये इन्तेज़ार ख़त्म तो नहीं…