तेरी रहमतों का कोई छोर नहीं,
तेरी दया का कोई ओर नहीं |
तेरी चाहतों का तकाजा है हमें,
तेरी परवाही का अंदाजा है हमें,,
इसलिए तेरे सिवा अब कोई ओर नहीं,
मेरी आशंकाओं का अंदाजा है तुझे,
तेरी निगाहों का कोई छोर नहीं |
ऐ मेरे मालिक ! सिर्फ तू जानता है मुझे,
की ये मन बड़ा चंचल है, और
इसकी चपलताओं का कोई छोर नहीं |
ऐ मेरे राम ! तुम थाम लो इस मन की डोर,
की, इस मन का सारथी अब कोई और नहीं ||
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